यज्ञ के जरिए भावनात्मक शिक्षा देना चाहते थे संत रोटीराम, महाराज भागवत समाप्ति के बाद भंडारा कार्यक्रम की हुई शुरुआत
यज्ञ के जरिए भावनात्मक शिक्षा देना चाहते थे संत रोटीराम, महाराज भागवत समाप्ति के बाद भंडारा कार्यक्रम की हुई शुरुआत
हमीरपुर अरविंद श्रीवास्तव
ब्रम्हलीन संत स्वामी रोटीराम महाराज यज्ञ के माध्यम से सम्पूर्ण क्षेत्र को भावनात्मक शिक्षा देना चाहते थे। जिसमें लोक चिन्तन शुद्ध एवं परिष्कृत होकर सत्यानुगामी बन सके तथा क्षेत्र का सारस्वत विकास हो सके।
ब्रम्हलीन संत रोटीराम महाराज भले ही आज हमारे बीच न हो लेकिन वह सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन को यज्ञात्मक अनुशासन में पिरोकर एकता और अखण्डता को मजबूत बनाने वाले इस आध्यात्मिक प्रयोग के जरिए भारतीय संस्कृति व धर्ममय वातावरण का निर्माण करना चाहते थे। जिसके लिये उन्होंने क्षेत्र में कई स्थानों पर यह अनुष्ठान कराये थे। सन 1957 में स्वामीजी ने प्रथम यज्ञ सुमेरपुर में करवाया था। इसके बाद से प्रतिवर्ष गायत्री महायज्ञ की वर्षगांठ गायत्री तपोभूमि में करवायी जा रही है। स्वामी जी मां गायत्री के अनन्य उपासक थे इसीलिये यज्ञ का नाम उन्होने गायत्री महायज्ञ रखा था। उनके बताये गये मार्ग चलकर प्रतिवर्ष सवा लाख गायत्री मंत्र का जप ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ की वर्षगांठ पर किया जाता है आज भागवत कथा समाप्ति के बाद भंडारा कार्यक्रम में लगभग 1 लाख लोगों को प्रसाद वितरण की व्यवस्था मेला कमेटी के द्वारा की गई है मेला कमेटी के अध्यक्ष टिंकू पालीवाल सदस्य डॉक्टर नरेश शर्मा रामू गुप्ता राधे शुक्ला अज्जू मिश्रा आल्हा सिंह अनूप त्रिवेदी इत्यादि स्थानीय कस्बा वासियों का सहयोग देखने को मिला महिलाओं एवं पुरुषों को सुबह से ही प्रसाद वितरण शुरू कर दिया गया